फोटो- सौजन्य ट्विटर
नई दिल्ली: बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतिक के रूप में हर साल दशहरा मनाया जाता है। इस दिन को विजयादशमी कहा जाता है। भगवान श्रीराम ने रावण का इसी दिन वध किया था जिसे हर साल रावण दहन पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस बार दशहरा का पर्व आज यानि 15 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस दिन लोग शस्त्र पूजा करते हैं और हर जगह जश्न का माहौल होता है। लेकिन बता दें कि देश में एक ऐसी भी जगह है जहां रावण को मंदिर में रखकर उसकी पूजा की जाती है। यहां रावण दहन करने का कोई रिवाज ही नहीं है।
दरअसल उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में बिसरख गांव है जिसे रावण की जन्मस्थली माना जाता है। बताया जाता है कि बिसरख गांव में रावण के पिता विश्रवा ऋषि ने अष्टभुजी शिवलिंग स्थापित कर शिव पूजा की थी। गौरतलब है कि वर्षों पुरानी इस शिवलिंग की गहराई आज तक कोई नहीं जान सका है। शिवलिंग की गहरीई पता करने कई बार खुदाई की गई है। लेकिन फिर भी शिवलिंग की गहराई का पता नहीं चल सका है। फिलहाल यहां शिव का मंदिर बना हुआ है। बताया जाता है कि रावण का जन्म यहीं हुआ था और उन्होंने शिव की पूजा भी बिसरख गांव में ही की थी।
कुछ लोगों का ये भी मानना है कि बिसरख रावण के नाना का घर है अर्थात रावण की मां यहीं की थीं। रावण की जन्मस्थली होने की वजह से गांव के लोग उसके प्रति आदर भाव रखते हैं। इसलिए यहां दशहरा नहीं मनाया जाता है। इसके अलावा गांव वाले यह भी बताते हैं कि जब भी कभी यहां के युवाओं द्वारा रामलीला का आयोजन किया गया तभी किसी न किसी की मौत हो गई और रामलीला को बीच में बंद करना पड़ा। इसलिए अब रामलीला का मंचन नहीं होता है।
उन्होंने बताया कि रावण ने इस मंदिर के अलावा गाजियाबाद के दूधेश्वर नाथ महादेव और हिरण्यगर्भ मंदिर में भी तपस्या की थी। इसके बाद रावण ने मेरठ की रहने वाली मंदोदरी के साथ विवाह किया। विवाह के बाद रावण परिवार सहित यहां से लंका के लिए पलायन कर गया था। रावण मंदिर के ट्रस्टी रामवीर शर्मा ने बताया कि रावण एक बहुत बड़ा विद्धवान था। उनके पिता ऋषि प्रकांड पंडित थे। उनके मुताबिक यह बिसरख गांव के लोगों के लिए सौभाग्य की बात है कि यहां रावण के पिता विश्रवा ने अष्टभुजी शिवलिंग स्थापित कर शिव की पूजा की थी। इसी मंदिर में शिव भगवान ने रावण को वरदान दिया था।
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