बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कहा है कि जातिगत जनगणना के मुद्दे पर वे पीछे नहीं हटेंगे। नीतीश कुमार ने कहा कि जातिगत जनगणना देश के हित में है। इससे पता चलेगा कि देश में पिछड़ों और अति पिछड़ों की आबादी कितनी है। इसके बाद पिछड़े लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने के भरोसेमंद उपायों को तैयार करने का काम हो सकता है। नीतीश कुमार नक्सलवाद से प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक में हिस्सा लेने नई दिल्ली आए थे।
नीतीश कुमार ने कहा कि वे बिहार में जातीय जनगणना के मुद्दे पर ऑल पार्टी मीटिंग बुलाएंगे। रविवार को दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा, " जातीय जनगणना एक जायज मांग है और ये समय की मांग है। यह विकास समर्थक है और नीति निर्माताओं को इससे पिछड़ी जातियों के लिए कल्याणकारी नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। जातीय जनगणना होनी चाहिए।"
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके साफ कर दिया कि 2021 में जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी। सरकार ने कहा कि जनगणना में पहले से ही अनुसूचित जातियों और जनजातियों (SC,ST) की जनगणना होती रही है। इस बार की जनगणना में भी वही होगा। इनके अलावा और किसी जाति की गणना नहीं की जाएगी। सरकार ने ये फैसला बहुत सोचकर लिया है।
नीतीश कुमार से पूछा गया कि जातिगत जनगणना के मुद्दे पर केंद्र सरकार के अपने फैसले को नहीं बदलने पर JD-U क्या NDA से अपना नाता तोड़ लेगा? इस पर नीतीश कुमार ने कोई साफ जवाब नहीं दिया और कहा कि बिहार वापस लौटकर वे इस मुद्दे पर विचार करेंगे। फिर भी नीतीश कुमार ने साफ कर दिया कि जातिगत जनगणना के मुद्दे पर वे पीछे नहीं हटेंगे। नीतीश कुमार ने कहा कि केवल बिहार सरकार ही जातिगत जनगणना की मांग नहीं कर रही है। कई दूसरे राज्यों से भी इसकी मांग की गई है। बिहार की विधानसभा में भी जातिगत जनगणना के लिए दो बार सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी पास किया जा चुका है।
इससे पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी जानिगत जनगणना के मुद्दे पर ट्विट कर चुके हैं। लालू प्रसाद ने भी जातिगत जनगणना की मांग का समर्थन किया है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी जातिगत जनगणना का समर्थन किया है।
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आजादी से पहले जातिगत जनगणना कराई जाती थी, उसके बाद जातिगत जनगणना को बंद कर दिया गया। केंद्र सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक जनगणना कराई थी लेकिन वह जातिगत जनगणना नहीं थी। बाद में सामाजिक-आर्थिक जनगणना को सरकार ने प्रकाशित भी नहीं किया।
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